नवपरिमल संगोष्ठी एवं पुस्तक-लोकार्पण

'नवपरिमल' के तत्वावधान में पुस्तक का लोकार्पण हिन्दी मीडिया सेन्टर,विनीत खण्ड, गोमतीनगर, लखनऊ में आयोजित की गई।जिसमें नवपरिमल के वरेण्य साहित्यकार श्री शिवमोहन सिन्हा जी की नवीनतम काव्य-कृति 'मेरी मधुशाला' का लोकार्पण किया गया।

नवपरिमल संगोष्ठी एवं पुस्तक-लोकार्पण

नवपरिमल संगोष्ठी एवं पुस्तक-लोकार्पण 

   लखनऊ की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था
'नवपरिमल' के तत्वावधान में पुस्तक का लोकार्पण हिन्दी मीडिया सेन्टर,विनीत खण्ड, गोमतीनगर, लखनऊ में आयोजित की गई।जिसमें नवपरिमल के वरेण्य साहित्यकार श्री शिवमोहन सिन्हा जी की नवीनतम काव्य-कृति 'मेरी मधुशाला' का लोकार्पण किया गया।
   कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अशोककुमार चौधरी, अध्यक्ष नवपरिमल, मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार, श्री शिवमूर्ति जी एवं विशिष्ट अतिथि समाज-सेवी श्री बालेन्द्र कुमार दुबे जी थे। समारोह में नवपरिमल के अन्य साहित्यकारों के साथ ही 'कामरान' संस्था के अध्यक्ष एवं महासचिव भी अपने साथियों के साथ उपस्थित रहे। इनके नाम निम्नवत हैं :-
 श्री विनोद शंकर चौबे, श्री राम प्रकाश त्रिपाठी 'प्रकाश', इं० देवकीनन्दन 'शान्त', डा.अनिल मिश्र, श्री महेन्द्र भीष्म, इं० अशोक कुमार मेहरोत्रा, डा.सुभाष गुरुदेव, इं० उदय भान पाण्डेय 'भान', श्री शिवमोहन सिन्हा, श्रीमती अञ्जना मिश्रा, डाॅ संगीता शुक्ला, इं० सतीश कुमार, श्री सूर्य प्रकाश श्रीवास्तव, श्री अम्बेश श्रीवास्तव, महसचिव कामरान, श्री वी. पी. श्रीवास्तव, अध्यक्ष कामरान, श्री जितेन्द्र बहादुर, श्री ए. के. सिन्हा, श्री मृतुञ्जय प्रसाद गुप्त, श्री विशाल मिश्र, डॉ अनुराधा पाण्डेय, सुश्री पायल लक्ष्मी सोनी एवं, सुश्री अपूर्वा शुक्ला 
          सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन डॉ अरुणेन्द्रचन्द्र त्रिपाठी, सुप्रसिध्द साहित्यकार ने किया। अतिथियों एवं सभी साहित्यकारों का स्वागत इं० उदयभान पाण्डेय, महासचिव, नवपरिमल ने मुख्य अतिथि श्री शिवमूर्ति जी के संक्षिप्त परिचय देते हुए किया। 
सर्वप्रथम दीप प्रज्वलन के बाद माँ सरस्वती जी के चित्र पर पुष्पाञ्जलि अर्पित की गई। अपने मधुर स्वर में स्वरचित सरस्वती वंदना, इं० अशोक कुमार मेहरोत्रा ने किया और सभी को भाव-भक्ति से भर दिया। इसी तारतम्य में इं० उदयभान पाण्डेय ने स्वरचित  नवपरिमल-कुलगीत, 'सुन्दर सहज सरल नवपरिमल..' 
सस्वर प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् अध्यक्ष नवपरिमल ने मुख्य अतिथि श्री शिवमूर्ति जी, विशिष्ट अतिथि श्री बालेन्द्र कुमार दुबे जी एवं कृतिकार श्री शिवमोहन सिन्हा जी का पुष्प गुच्छ देकर और शाल ओढ़ाकर 
का सम्मान किया। कृतिकार का संक्षिप्त परिचय उनके मित्र श्री वी पी श्रीवास्तव जी ने दिया और इसी क्रम में मंचस्थ साहित्यकारों द्वारा पुस्तक का लोकार्पण सोल्लास सम्पन्न हुआ। 
 इसके उपरांत कृतिकार, श्री शिवमोहन सिन्हा जी अपने उद्बोधन अपने उद्गार निम्नवत व्यक्त किया :-
    'मेरी मधुशाला' पुस्तक जीवन के विविध रंगों 
 को प्रतिबिंबित करती है।सभी रुबाइयाँ
 अष्टपदीय हैं और सामाजिक विषमताओं,
 राजनीतिक स्वार्थ, आध्यात्मिक चिंतन तथा
 देश प्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत हैं। यह
 पुस्तक मात्र एक पुस्तक न होकर मेरे जीवन 
 के प्रति अनुभवों का सार है। पुस्तक मानवीय 
 संवेदनाओं, आध्यात्मिक चिंतन और गिरते
 मानवीय मूल्यों के विषय में बताती है।

      उन्होंने काव्य-कृति 'मेरी मधुशाला' से कुछ रचनाओं का सस्वर पाठ भी किया जिनमें निम्न रचनायें उल्लेखनीय हैं :-
  'कई रंग हैं इस जीवन के कौन रंग तेरा हाला, 
कर्म, ज्ञान और भक्ति मार्ग में कौन तेरा मधु का प्याला।
खोजो उसको जो विराट है जिसका मिलना बहुत कठिन, 
उस भागीरथ को तुम ढूँढ़ो आकर मेरी मधुशाला।।' 
         ××××
'जीवन मूल्य खड़े सागर तट डूबन को व्याकुल बाला, लहरें करतीं सागर मंथन अमृत निकले मधु प्याला।
कोई शिव अब नहीं दीखता जो पी ले विष का प्याला, नित्य किया करती जल मंथन क्षीर-नीर निधि मधुशाला।
     ×××××××
'मैं ही सत्य, बीज अविनाशी जल में रस मैं ही बाला, 
मैं ही सृजन,विलोपन मैं ही मैं ही आदि,अन्त हाला। 
मैं ही चित्त प्राणियों में हूँ, वाणी में ओंकार सदा,
मैं सब में, सब मुझमें ही हैं, मर्म बताती मधुशाला।। 
      ×××××××
' जीवन एक रंगमंच है सभी पात्र बनते हाला, 
कोई बन विद्रूप यहाँ पर कोई बना है मतवाला।
चेहरे पर सब चेहरा डाले सच्चा चेहरा जोकर का, 
जग को खूब हँसाता पहले आ जाता फिर मधुशाला।।'
          ***
    श्री अम्बेश श्रीवास्तव, महासचिव, कामर्शियल टैक्स रिटायर्ड आफिसर्स एसोसिएशन, उ प्र द्वारा "मेरी मधुशाला" कृति के सम्बन्ध मे बोलते हुए कहा कि कृतिकार श्री सिन्हाजी, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी है, ने अपनी इस रचना मे आध्यात्म के समस्त सूत्रों एवं सिद्धान्तों को स्पर्श  किया है। 151 अष्टपदी छन्दों के 150वें छन्द मे " मधुशाला" को परिभाषित करते हुए भक्ति के उस सर्वोच्च भाव के समान बताया है जहाँ सीधा भगवान के स्वरूप का दर्शन है। विभिन्न छन्दों के माध्यम से "आत्मा", "ब्रह्म" माया आदि से सम्बन्धित गीता के सिद्धान्तों को समझाया गया है। 
                   कृतिकार श्री शिवमोहन सिन्हा जी द्वारा अपने सम्बोधन मे अपनी रचना का परिचय कराते हुए बताया गया इस पुस्तक मे जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श करते उन्हे समग्र रूप से समावेशित किया गया है। कुछ छन्दो को सन्दर्भित करते हुए समझाया कि किस प्रकार मानवधर्म, आध्यात्म, सामाजिक धर्म आदि का निरूपण किया गया है। कहा गया कि हृदय के भावों को कवि अपनी रचना मे उतारता है, किन्तु इसकी रचना इस प्रकार है कि सुधी पाठक अपने जिस सात्विक भावों से इसका अवलोकन करेंगे, यह पुस्तक उसी रूप मे उनके समक्ष होगी।

     नवपरिमल संस्था के उपाध्यक्ष काव्यश्री राम प्रकाश त्रिपाठी 'प्रकाश' ने 'मंगलाषा' स्वरूप निम्न छन्द प्रस्तुत कर कवि को अपना आशीर्वाद दिया :-
"इनको वन्दन के स्यन्दन चढ़ा लीजिये,
इनको आस्था का नन्दन कहा कीजिये। 
जितने तन के धवल, उतने मन के विमल, 
इनको माथे का चन्दन बना लीजिये।।" 

  इसी तारतम्य में कृति के ऊपर इं० अशोक कुमार मेहरोत्रा ने अपनी ये सारगर्भित रचना प्रस्तुत किया, 
"जीवन के सारे निचोड़ से की तैयार मधुर हाला,
सुन्दर शब्दों से गढ़-गढ़ के बना दिया अद्भुत प्याला।
खुद ही साक़ी बन ‘शिवमोहन’, घूम-घूम कर पिला
रहे,
झूम रहे सब, पढ़-पढ़ कर ये, अलबेली सी मधुशाला।। 

    पुस्तक के समीक्षात्मक उद्बोधन में मुख्य वार्ताकार के रूप में सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ अरुणेन्द्रचन्द्र त्रिपाठी
ने निम्न टिप्पणी की:-
       बच्चन जी की 'मधुशाला' की परम्परा में कवि श्री शिवमोहन सिन्हा जी की काव्य-कृति 'मेरी मधुशाला', उस परम्परा को स्मरण कराती है। आज का समाज विभिन्न समस्याओं और आन्तरिक संघर्षों से ग्रस्त है। कवि ने समय और समाज को निकट से देखते हुए 'मेरी मधुशाला' काव्य के माध्यम से सकारात्मक संदेश दिया है। इस काव्य में गेयता, भावप्रवणता और काव्यात्मक सौन्दर्य भी है। कवि श्री शिवमोहन सिन्हा जी ने समाज की विषमताओं को चित्रित करते हुए मानव जीवन में कर्म, ज्ञान और भक्ति के महत्व का भी उल्लेख किया है। कृतिकार ने अपनी काव्य-कृति के माध्यम से वर्तमान परिवेश में सामयिक संदेश दिया है जिसकी काव्य-संसार में सर्वत्र सराहना होगी। 


  विशिष्ट अतिथि श्री बालेन्द्र कुमार दुबे जी ने भी कवि अपनी शुभकामनाएं दीं। 
  मुख्य अतिथि श्री शिवमूर्ति जी ने अपने उद्बोधन में 
इतनी सुन्दर और सार्थक सृजन के लिए कवि शिवमोहन सिन्हा की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ये कविताएं पाठकों आनन्दित करने के साथ उन्हें चिन्तामुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देंगी। 
  अन्त में अध्यक्ष नवपरिमल श्री अशोक कुमार चौधरी जी ने अपने संद्बोधन में श्री शिवमोहन सिन्हा जी को इतनी सुन्दर काव्य-कृति के लिए हार्दिक बधाई दिया। उन्होंने अपना आशीष और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भविष्य में भी कवि ऐसे सृजन कर समाज को एक दिशा देने में अपनी महती भूमिका निभाएगा, ऐसा उन्हें पूर्ण विश्वास है। 
सबसे अन्त में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए, सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं साहित्यकार श्री महेन्द्र भीष्म जी ने कवि काव्य-कृति की सराहना की और उन्हें शुभकामनाएं दीं।

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